गुण, सामान्य रूप से प्रयोग किया जाने वाला एक संस्कृत शब्द है। इस शब्द का
उपयोग प्रायः सभी लोगों द्वारा किया जाता है। यहां तक कि उन लोगों द्वारा भी,
जो संस्कृत जानते तक
नही हैं क्योंकि यह लगभग सभी भारतीय भाषाओं में पाया जाता है। वैसे तो 'गुण' शब्द का व्यापक रूप से
प्रयोग किया जाने वाला अर्थ विशेषता है,
लेकिन फिर भी इस शब्द
की उत्पत्ति और अन्य सभी अर्थों को समझ लेना भी आवश्यक है।
पहली बात तो यही, कि यह एक संस्कृत शब्द है। चूंकि संसार की अन्य पुरानी
भाषाओं- ग्रीक, लैटिन और फारसी की तरह संस्कृत भी एक
शास्त्रीय भाषा है। इसलिए किसी भी अन्य शास्त्रीय भाषा की तरह संस्कृत के भी अधिकांश शब्द जड़ अथवा मूल से ही
व्युत्पन्न होते हैं।
'गुण' शब्द मूल रूप से ‘गुन’ शब्द से लिया गया है, जिसके अर्थ हैं- सलाह
देना, आमंत्रित करना और गुणा करना। इसे एक अन्य
मूल शब्द ‘गण’ से भी व्युत्पन्न
किया जा सकता है, जिसका अर्थ होता है- गिनना या गणना करना।
इसके अतिरिक्त ‘गुण’ शब्द को मूल शब्द ‘ग्रह' से भी प्रकट माना जा सकता है। ‘ग्रह’
के शाब्दिक अर्थ होते हैं- पकड़ना, छिनना, अधिकार में लेना,
अपनाना, ग्रहण करना,झपट लेना,नियंत्रण स्थापित कर लेना,रोक लेना, बंदी बनाना,पक्ष करना, वश में करना, सशक्त बनाना अथवा लूट, अमूर्त, लाभ, जीत, प्राप्त, स्वीकार, अधिग्रहण,
संग्रह, समावेश, प्रारंभ,
निरीक्षण, समझ, सीख, स्वीकार करना और स्वीकृति देना।
इस प्रकार 'गुण' शब्द का अर्थ हुआ- एक
अच्छी विशेषता, योग्यता, गुणवत्ता,
उत्कृष्टता, प्रतिष्ठा,
प्रभाव, परिणाम,
कोई धागा, डोरी, रस्सी, रज्जू,धनुष की प्रत्यंचा, किसी वाद्ययंत्र की तारें, स्नायु, सशक्त, सहजगुण और
प्रकृति, प्रवृत्ति या विशेष धर्म। इसके अतिरिक्त संख्याओं के विषय में 'गुण' शब्द के कई अन्य अर्थ
भी हैं, जैसे- गुणा करना, गुणक, गुणांक, एक ही अंक को कई बार जोड़ना, दोहराना, तह करना इत्यादि।
वास्तव में ‘गुण’ शब्द किसी भी सृष्टि
के मूलतः तीन गुणों- सत्व गुण, रज गुण और तामस में से किसी एक को ही दर्शाता रहा होता है। इसी
प्रकार यदि कोई वस्तु किसी अन्य वस्तु की तरह दृष्टि, गंध, स्पर्श, ध्वनि और स्वाद जैसी इंद्रियों से जुड़ी कोई भावना
रखती है, तो इसे भी उन वस्तुओं का गुण ही कहा जाएगा।
'गुण' शब्द के अन्य अर्थों
में- कम महत्व का तत्व या द्वितीयक तत्व,किसी अन्य वस्तु का अधीनस्थ भाग या अतिरिक्त, बहुतायत,
बाहुल्य, कोई विशेषण तथा वाक्य में किसी अन्य शब्द के नीचे कोई एक और शब्द
भी होता है। इसका प्रयोग रसों या मनःस्थिति को दर्शाने के लिए भी किया जा सकता है।
साथ ही इसका प्रयोग किसी शब्द की श्रेणी में अथवा उसके अर्थ में निहित गुणवत्ता या
विशेषता बताने के लिए किया जा सकता है।
'गुण' शब्द का अलग अर्थ यह भी है कि इसे किसी देश के कूटनीतिज्ञों द्वारा किसी
अन्य देश के साथ राजनीतिक संबंध स्थापित करने की छः महत्वपूर्ण रणनीतियों में से
एक माना जाता है। यह रणनीतियां इस प्रकार हैं-
1. संधि
अर्थात् शांति,
2.
विग्रह अर्थात् युद्ध,
3.
यान अर्थात् अभियान
4. स्थान या आसन यानी रुकावट
5.
संश्रय अर्थात् आश्रय की तलाश और अंतिम
6. द्विधा यानी कपट।
'गुण' का एक अर्थ अधीनस्थ पकवान भी होता है और यह भीम के नामों में से भी एक है।
इसका अर्थ- प्रजाति, विभाग,
उपविभाग या फिर कोई एक प्रकार
अथवा श्रेणी भी हो सकता है। साथ ही छोड़ना और त्यागना भी गुण शब्द के ही अभिप्राय
हैं।
भारतीय दर्शन की अलग-अलग शाखाएं ‘गुण’ शब्द को अपने अनुसार अलग- अलग प्रकार से
परिभाषित करती हैं। सांख्य दर्शन का मानना है कि प्रत्येक वस्तु सत्व, रज और तम नाम के इन तीन गुणों का
उचित संयोजन या संतुलिन होती है। वहीं, न्याय दर्शन का मानना है कि- कुलमिलाकर
विश्व में सत्रह या चौबीस गुण पाये जाते हैं, जिन्हें बाद के और पहले के विद्वान
अलग- अलग परिभाषित करते हैं। इनके अतिरिक्त वैशेषिक दर्शन में 'गुण' को सात पदार्थों में से एक माना गया है।
श्रीमद् भगवद्गीता के सोलहवें और अठारह अध्यायों में सत्त्व,
रज और तम इन तीन गुणों
के आधार पर विभिन्न श्रेणियों के कार्यों की व्याख्या की गई है। वहीं, आयुर्वेद
में गुण' को पदार्थ के बीस मौलिक प्रकृति में से एक माना जाता है। संस्कृत व्याकरण के
क्षेत्र में ‘गुण’ को सरल स्वरों को सुदृढ़ करने के लिए
अंतिम ‘अ’ को दीर्घ करने के
अर्थ में लिया जाता है और अद्वैत वेदांत के अनुसार व्यक्ति को अपनी सच्ची प्रकृति
पाने के लिए तीनों गुणों पर विजय पानी होगी अर्थात् गुणातीत होना पड़ेगा।
लेखक : संपादक
प्रबुद्ध भारत। यह आलेख लेखक के अंग्रेजी आलेख का हिंदी अनुवाद है |
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