विवेक संस्कृत का एक
आम शब्द है
जिसका प्रयोग असंस्कृतभाषी भी
प्रतिदिन करते हैं|
कई भाषाओं में इसका अर्थ बुद्धि होता है किन्तु व्यापक रूप मैं इसका अर्थ भेद करने की शक्ति मन जाता है| परन्तु इस शब्द की
व्युत्पत्ति और अन्य अर्थ भी जानने चाहिए| संस्कृत में,
अन्य शास्त्रीय भाषाओं, जैसे फ़ारसी, ग्रीक, लैटिन, की तरह हैं
धातु से शब्द बनते हैं|
विवेक विच धातु में 'वि. उपसर्ग को जोड़कर बनाया गया है। विच
का अर्थ है
परे, पृथक, वंचित, भेद, विचार या
न्याय। अतः विवेका का अर्थ है
भेद करना, निर्णय करना, प्रभेद करना, बुद्धि, विचार, चर्चा, जांच, भेद, अंतर, सच्चा ज्ञान, जलपात्र, घाटी, जलाशय, सही
निर्णय और एक
जल कुंड। विवेका का एक अर्थ वास्तविक गुणों के
आधार पर वस्तुओं का वर्गीकरण करने की क्षमता भी
है।
वेदांत में, विवेक का अर्थ अदृश्य ब्राह्मण को
दृश्य जगत से,
पदार्थ से आत्मा, असत्य से सत्य, मात्र भोग या
भ्रम से वास्तविकता को
पृथक करने की
क्षमता है | वास्तविकता और
भ्र्म एक दूसरे की ऊपर उसी
तरह अद्यारोपित हैं
जैसे पुरुष और
प्रकृति, इनके बीच
भेद करना विवेक है | यह अनुभवजन्य दुनिया से स्वयं या
आत्मान का भेद
करने की क्षमता है। विवेक, वास्तविक और असत्य के
बीच की समझ
है जो इस
बात को समझती है कि ब्राह्मण वास्तविक है और
ब्राह्मण के अलावा सब कुछ असत्य है। इसका अर्थ धर्म अनुरूप और
धर्म प्रतिकूल कार्यों के बीच अंतर करने की क्षमता भी है। यह
वास्तविकता की समझ
है |
आध्यात्म की मार्ग के लिए आवश्यक चार गुणों में
से एक विवेक है| इन गुणों को साधना-चतुष्टय या साधना की
चौपाई कहा जाता है| अन्य तीन
गुण है वैराग्य, शमा-अदि-षट्का-संपत्तिः - छह गुणों की
संपत्ति - जिसका आरम्भ सम
यानि मन को
शांत करना, और
मुक्षत्व यानि मोक्ष की कामना|
विवेक की महत्ता आध्यात्मिक या धार्मिक जीवन की प्रस्थान बिंदु मानने के
कारण भी है
| विवेक उस गहन
चिंतन को धारण करता है जो
किसी भी व्यक्ति को सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड की
क्षणभंगुरता की समझ
देता है| एक
बार जब किसी व्यक्ति को दुःख की पुनरावृतिए एवं
चक्रीय प्रकृति का
भान हो जाता है जिससे जीवन पर्यन्त भोगना होता है, तो व्यक्ति बुरी तरह से
दुख के इस
चक्र से निकलने का रास्ता ढूंढ़ता है।
विवेका एक बार
की प्रक्रिया नहीं है। व्यक्ति को
जीवनपर्यन्त विभेद में
लगा रहने पड़ता है | विवेक के इस
निरंतर अभ्यास की
आवश्यकता अविद्या है,
मौलिक अज्ञान है,
जो हमारे दिमाग पर छा जाता है और यह
विश्वास करवाता है
कि असत्य सत्य है और वास्तव में सत्य है,
अर्थात आत्मान है
वो असत्य है|
परम-हंस, पौराणिक हंस, की दूध
और पानी में
भेद करने की
क्षमता (नीर-क्षीर विवेक) के कारण उसके विवेक को
उच्चतम माना जाता है। विवेक का
अभ्यास निरंतर प्रश्न एवं समालोचनात्मक विचार-विमर्श से किया जाता है|
लेखक : संपादक प्रबुद्ध भारत। यह आलेख लेखक के अंग्रेजी आलेख का हिंदी अनुवाद है |
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यह लेख सर्वप्रथम प्रबुद्ध भारत के March 2019 का अंक में प्रकाशित हुआ था।
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