- विश्व पर्यटन मानचित्र में पुडुचेर्री भारत के प्रमुख दर्शनीय स्थलों में एक है| यहाँ का फ़्रांसिसी स्थापत्य लोगों को भारत में फ्रांस का अनुभव देता है |श्री अरविन्द के ऑरोविले ने इससे एक आध्यात्मिक स्थल के रूप मैं पहचान दी हैं |
दक्षिण भारत में बंगाल की खाड़ी से लगा तटीय शहर पुडुचेर्री भारत के दूसरे शहरों से कई मायनो में भिन्न है। शहर का एक भाग पूरी तरह से फ्रांसीसी रंग में डूबा दिखेगा, जबकि दूसरा आधुनिक दक्षिण भारतीय नगरों की तरह ही बहुरंगी एवं भीड़-भाड़ वाला है। पर कम लोग यह बात जानते हैं कि पुडुचेर्री, एक प्राचीन नगर, वेदपुरी की बुनियाद पर बसा है |
पुडुचेर्री की प्रसिद्धि का प्रमुख कारण दार्शनिक महर्षि अरविन्द और उनकी शिष्या मीरा अल्फासा की कर्मस्थली होने से है। यहां पर उनका आश्रम है। नगर से लगभग 12 किमी दूर, अल्फासा ने अपने गुरु की अवधारणा पर आधारित एक नगरी ओरोविल बसाई है, जहां दुनिया के अनेक देशों आये लोग एक साथ रहते हैं।
पुडुचेर्री के इसी स्वरुप को देखने प्रतिवर्ष बड़ी संख्या में देशी व विदेशी पर्यटक आते है। जिनमें से कुछ की रुचि यहां की पुरानी फ्रांसीसी कालोनी को देखने की होती हैं जो आजादी से पहले यहां उरोज पर थी। कुछ की रूचि यहाँ के समुद्र तटों पर शान्ति से समय बिताने की होती हैं । वहीं कई लोग महर्षि अरविन्द की कर्मभूमि में उनके जीवन दर्शन को जानने और इससे आध्यात्मिक उर्जा ग्रहण करने आते हैं।
प्राचीन वेदपुरी अनुश्रुतियों के अनुसार, यहां समीप में कभी प्राचीन नगरी वेदपुरी हुआ करती थी । जहाँ पर दूर-दूर से विद्यार्थी शास्त्रों की शिक्षा लेने आते थे। कुछ लोग इस स्थान को ऋषि अगस्त्य की तपस्थली भी बताते हैं । कालान्तर में यह नगर विलुप्त हो गया।
पुडुचेर्री का पुराना नाम कभी पोडुके था। जब इसके प्राचीन इतिहास का पता चला तो इसके तीन किमी. दक्षिण में मछुआरों की बस्ती में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने व्हीलर के नेतृत्व में, 1945 में, यहां पर उत्खनन किया गया। खुदाई में मिली सामग्रियों से पता चला कि एक ई्रस्वी पूर्व से दो ईस्वी के मध्य अरिकमेडु में एक उन्नत बन्दरगाह था और ग्रीस व रोम के साथ व्यापार होता था। इसकी पुष्टि यहां पर दो शती ई0 पूर्व के रोमन कालीन चीनी मिट्टी के बर्तनो से हुई। वहीं पोडुके उस समय अपने बढ़िया मलमल के लिये प्रसिद्ध था।
उत्खनन से निकली सामग्री को देख कर ही यह अनुमान लगाया गया कि यह बन्दरगाह ईसा पूर्व की पहली शती से दूसरी शती ई. के मध्य समुद्री व्यापार का प्रमुख केन्द्र था। दूसरी शती के उपरान्त यह नगरी एक प्रकार से नैपथ्य में चली गई। यदि शासनकालों की बात करें तो पहली एवं दूसरी सहस्त्राब्दि के मध्य यह क्षेत्र दक्षिण के पूर्ववर्ती एवं उत्तरवर्ती चोलों, पल्लव, विजयनगर के सशक्त शासकों के अधीन रहा। कालान्तर में यह क्षेत्र नायक शासकों के अधीन रहा। उनके पतन के पश्च्यात अल्पावधि के लिये यह स्थान मुस्लिम शासको व अंग्रेजों के अधीन भी रहा।
फ्रांसीसी अधिपत्यसन् 1673 में फ्रांस ने पुडुचेर्री के छोटे से भूभाग से अपनी व्यापारिक गतिविधियां आरम्भ की और फिर इस पर अधिकार कर लिया। पुदुचेरी का नाम पाण्डिचेरी उन्होंने ही रखा। इसके पश्च्यात उन्होंने अपनी बस्तियां बसानी आरम्भ कीं। अट्ठारहवीं सदी के आते आते उन्होंने पश्चिमी तट पर माहे (केरल) एवं पूर्वी तट के येनम (आंध्रप्रदेश) और करेक्कल (तमिलनाडु) जैसे स्थानों पर छोटे-छोटे दूसरे उपनिवेश बना लिये। उस समय तक ईस्ट इडिया कम्पनी भारत के काफी बड़े हिस्से पर कब्जा कर चुकी थी। फ्रांस के विस्तारवादी रवैये पर लगाम लगाने एवं अपना दबदबा दिखाने के लिये कम्पनी सरकार ने कम से कम तीन बार सन् 1761, 1778 व 1793 में पांडिचेरी पर हमला बोल कर उस पर अपना अधिकार किया। किन्तु जीतने के बाद वो जीते हुए भाग को फ्रांस को वापिस लौटा देते। सन् 1814 के पश्च्यात, अंग्रेज़ों और फ्रांसीसियों के बीच पुडुचेर्री को लेकर कोई युद्ध नहीं हुआ । इससे उन्होंने अपने को अच्छी प्रकार स्थापित कर दिया। भारत की इस धरती पर फ्रांसीसी 1954 तक बने रहे। आखिरकार 31 अक्टूबर, 1954 को पाण्डिचेरी फ्रांसीसी दासता से मुक्त हुई और 1 नवम्बर, 1954 को पाण्डिचेरी का भारतीय गणराज्य में विलीनीकरण कर इसे केन्द्र शासित प्रदेश का दर्जा दे दिया गया।
वर्तमान पुडुचेर्री विश्व में जब नगरों को उनके पुराने नामों में बदलने का क्रम आरम्भ हुआ तो भारत में भी अनेक शहरों के नाम उनके पुराने नामों पर कर दिये गये। इसी परिप्रेक्ष्य में 20ं सितम्बर 2006 को पाण्डिचेरी का नाम बदल कर फिर से पुडुचेर्री कर दिया गया। इरअसल में पुडुचेर्री का तमिल भावार्थ होता है- नया गांव। किन्तु कल का यह नया गांव ‘पुडुचेर्री’ आज का एक आधुनिक शहर है।
चार जिलों वाले इस केन्द्र शासित प्रदेश का क्षेत्रफल मात्र 600 वर्ग किमी. है जिसकी राजधानी पुडुचेर्री है। पुडुचेर्री के तीन ओर तमिलनाडु की सीमा है जबकि एक ओर बगाल की खाड़ी। नगर का पुराना भाग पूरी तरह से नियोजित है जहां पर व्यवस्थित एवं एकरूप बने सफेद रंग की दीवारों वाले भवन, समानांतर व एक दूसरे को समकोण पर काटती साफ व चौड़ी सड़कें व गलियां हैं । इसी प्रकार यहां के भवनों की शैली इसे दूसरे शहरों से अलग करती है | यहाँ की सड़को और गलियों के नाम फ्रांस के प्रबुद्ध व्यक्तियों के नाम पर है। वहीं इसके उलट जहां शहर का विस्तार हुआ है वहां का मिज़ाज् दक्षिण भारतीय शहरों जैसा चटख व चहल पहल तथा शोर से भरपूर है।
नगर से लगी तट रेखा पुडुचेर्री का सबसे बड़ा आकर्षण है। गूबर्ट या तट मार्ग नगर की शान है जिसके दूसरी ओर मीलों फैला समुद्र है। हर सागर तट की तरह यहां पर भी सायंकाल की बेला बेहद मनमोहक होती है। सुबह के समय बड़ी संख्या में स्थानीय लोग यहाँ टहलने आते है| सांयकाल को यहां पर कुछ-कुछ चैपाटी जैसा पर्यटकों का मेला लगता है। यहाँ पर ऊंची उठने वाली लहरों का तट से टकराना व वापिस लौटने का मन्त्रमुग्ध कर देने वाला दृश्य होता है| किन्तु समुद्री तूफान के समय यह लहरें बहुत ही डरावना रूप ले लेती हैं और सड़क पर चलने वाले को भी भिगो डालती हैं।
Mahatma
Gandhi statue on sea-side
बीच या गूबर्ट रोड के आस-पास कई दर्शनीय स्थान हैं। बीच रोड के पूर्वी छोर पर आठ स्तम्भों वाला गांधी मंडपम् है जहाँ गांधी जी की एक मूर्ति स्थापित है। इसके हर खम्भे पर भारतीय शिल्प से सुसज्जित है जिससे समीप जाकर ही देखा जा सकता है। गांधी प्रतिमा से कुछ दूर पर 19वीं शती में बना प्रकाश स्तम्भ है। समीप में हीं प्रथम विश्वयुद्ध के दौरान शहीद सैनिकों का स्मारक है। लाइट हाउस के पीछे भारती पार्क है जिसके केन्द्र में संगमरमर से बना, फ्रांसीसी काल का, स्मारक आई मण्डपम है। इसके एक ओर पुडुचेर्री विधानसभा भवन और दूसरी ओर पुराना राजभवन अवस्थित है। समीप में हीं 1742 में गवर्नर रहे जोसेफ डुपलेक्स की प्रतिमा है।
संग्रहालय व
गिरिजाघरपुडुचेर्री में तीन संग्रहालय है इनमें पाण्डिचेरी म्यूजियम प्रमुख है। इस संग्रहालय में ग्रीक - रोमन काल से लेकर फ्रांसीसी काल की सामग्री, शिल्प, व दूसरी वस्तुओं को प्रदर्शित किया गया है। इसमें चोल, पल्लव व विजयनगर काल की भी कुछ सामग्री प्रदर्शित है। ऊपरी तल पर रहन-सहन से जुडी वस्तुएं प्रदर्शित है। संग्रहालय में जिवाश्वम फासिल्स, पुरानी पुस्तकें, सिक्के, चित्र आदि के होने से यह एक समृद्ध संग्रहालय है। नेहरु गुडिया संग्रहालय व तमिल कवि भारती के नाम पर बने दो और संग्रहालय भी है।
पांडिचेरी के फ़्रांसिसी चर्च भी अपनी वास्तुशैेली के कारण बेहद आकर्षक हैं। मिशन स्ट्रीट पर इमैक्युलेट कन्सेप्शन कैथेड्रल ढाई सौ साल पुराना है। इसे सेन्ट पाल चर्च या तमिल में सम्बा कोविल नाम से भी जाना जाता है। गांधी मण्डपम के बाई तरफ ‘इग्लाइज डी.’ चर्च की सुंदर इमारत है। सेक्रेड हार्ट चर्च भी एक अन्य प्रमुख चर्च है। ‘लेडी एंजिल चर्च’ भी एक पुराना चर्च है।
शहर के एक ओर 1826 में स्थापित एक वनस्पति उद्यान भी है इसका पुराना नाम कोलोनियल पार्क है। यह उस दौर के एक सुप्रसिद्ध वनस्पति शास्त्री की देख-रेख में तैयार किया गया था। एक जिसमें लगभग 1500 प्रकार की वनस्पतियों हैं। मनोरंजन के लिये टॉय ट्रैन व संगीतमय फव्वारा भी है। शाम के समय संगीत की लय पर बिजली की रंगबिरंगी रोशनी में पानी की धार लोगों का मंत्रमुग्ध कर देती है। शहर के नवीन दर्शनीय स्थलों में पाम हाउस उल्लेखनीय है जहां एक कृत्रिम तालाब और पार्क है।
Entrance to Maharshi Aurobindo Ashram
रविन्द आश्रम
अरविंद आश्रम पांडिचेरी का एक आध्यात्मिक केन्द्र है। कभी यहां पर महर्षि अरविंद और माता का निवास था। यहीं पर श्री अरविंद और माता की समाधि भी है यहाँ पर लोग उन्हें श्रद्धासुमन चढ़ाते हैं। यह महर्षि के विचारों के प्रसार का एक केंद्र है, और दुनिया के विभिन्न देशों से लोग यहाँ योग व शान्ति की चाह में आते है। इसकी स्थापना महर्षि अरविंद ने 1926 में की थी। बाद में उनकी फ्रांसीसी शिष्या मीरा अल्फासा ने विस्तार दिया। पेरिस में जन्मी मीरा अल्फांसा 1914 में जब पांडिचेरी आई तो यहां महर्षि अरविंद के रूप में उन्हें एक ऐसा गुरु मिला जिनके माध्यम से उन्हें लगा कि वे अपने लक्ष्य को प्राप्त कर सकती हैं। वे
1920 से 1973 अपने अंतिम समय तक यहीं रहीं। महर्षि अरविन्द के विचारों से प्रेरित होकर उन्होंने वास्तुकार रोजर आर्गर से उससे ओरोविल के रूप में साकार करवाया । इस आश्रम में रोजाना बड़ी संख्या में पर्यटक आते है। एक आध्यात्मिक व स्नेहमयी महिला होने के कारण वे मदर नाम से ख्यात हुई।
ओरोविलपुडुचेर्री से 12 किमी दूर ओरोविल है जहां पर महर्षि आरविन्द की मानव एकता कीं संकल्पना को मूर्त रूप देने के लिए मदर ने एक अंतरराष्ट्रीय नगर बसाने का प्रयास किया था। वे मानती थीं कि धरती पर एक ऐसे स्थान और समाज की आवश्यकता है जहां लोग आपस में सौहार्द के साथ किसी तरह के राग-द्वेष के बिना भाईचारे के साथ रह सकें। ओरोविल इसी कल्पना का स्थान है जहां पर न देशों की परस्पर प्रतिस्पर्धा है न वैमनस्य न परस्पर विरोधी विचार। आध्यात्मिक सुख को खोज कर ईश्वर से एकाकार होने के लिये एक अलग सा स्थान। जिसे आज उनके शिष्य चला रहे हैं|
जहां पर वर्तमान में लगभग 45 देशों से विभिन्न संप्रदायों के लोग एक नई सोच के साथ रहते है| जिनका अपना अलग-अलग क्षेत्र है जो पूरी तरह स्वावलंबी है और आध्यात्मिक उन्नयन में विश्वास करते हैं। आश्रम में रहने वाले लोग पर्यावरण का ध्यान रखते हुये सादा जीवन बिताते हैं और समाज के विकास में भी पूरा सहयोग देते हैं। इस नगर की अपनी स्वयं की व्यवस्था है जो आश्रम के सिद्धान्तों पर आधारित है। हालांकि इसकी कई सीमाएं व बाध्यतायें भी हैं। यह आश्रम अनेक क्रियाकलापों का संचालन करता है।
ओरविल के केन्द्र में स्वर्णिम परावर्तकों से ढका मातृ मन्दिर है जो 9 मंजिले भवन जितना ऊंची गोलाकर संरचना है। इसके मध्य में एक ध्यान केन्द्र है। बाहर से आने वाली अन्तरिक्ष रश्मियां परावर्तित हो जायं और ग्लोब के मध्य ध्यानकेन्द्र में विघ्न न हो इस लिये इसके बाहर हजारों परावर्तकों को लगाया गया है। मन्दिर के मध्य में एक स्फटिक की एक पृथ्वी की प्रतिकृति है जो सूर्य की किरणों से प्रकाशित होती है । अपने विशाल आकार के कारण यह मन्दिर बहुत दूर से दिखता है। इसके चारों ओर एक बाग़ और रंगभूमि है। इसमें अन्दर जाने के लिये पूर्वानुमति लेनी होती है।
पर्यटक प्रवेश द्वार के समीप, ऑरोविल के निवासियों द्वारा बनाई गई वस्तुएं, हस्तशिल्प विक्रय केन्द्र से खरीद सकते है। आश्रम में अनुशासन का पालन होता है। माता के जन्म दिन 21 फरवरी को दुनिया भर से उनके और श्री अरविंद के अनुयायी यहाँ आते हैं। ओरोविल से कुछ दूर ऑरो सागर तट है जो शांत, सुंदर और शहरी कोलाहल से दूर है। यहां सूर्योदय व सूर्यास्त का समय मन्त्रमुग्ध करने वाला होता है। इस उथले समुद्र तट में देशी विदेशी सैलानी रेत, जल और धूप का आनंद लेते नजर आते हैं।पश्चिम में एक दूसरा तट पैराडाइज तट है जहाँ के अनूपझील(बैकवाटर्स) में नौकायन का आनन्द लिया जा सकता है।
कहाँ ठहरें
व कैसे
आयें
पुडुचेर्री में घूमने व जानने के लिये कम से कम तीन दिन का समय चाहिये। एक प्रमुख पर्यटन केन्द्र होने से पुडुचेर्री में हर प्रकार के होटल एवं विश्राम गृह उपलब्ध है। तटों के किनारे भी कुछ सैरगाह है। खान-पान के दृष्टिकोण में भी यहां पर विविधता है। तमिल भोजन से लेकर फ्रांसीसी और कई दूसरे प्रकार के भोजन भी मिलते हैं । रेल या विमान से चेन्नई पहुंचकर वहां से बस या टैक्सी से पुडुचेर्री पहुंचना सबसे अच्छा विकल्प है। चेन्नई से पुडुचेर्री के बीच ईस्ट कोस्ट एक्सप्रेस से महाबलीपुरम होते सड़क दूरी 160 किलोमीटर है जिसे तय करने में ढाई से तीन घंटे लगते है। रास्ते में चोलामंडलम में शिल्प ग्राम एवं मगरमच्छ संरक्षण व प्रजनन केंद्र है। दक्षिण के दूसरे नगरों से भी पुडुचेर्री के लिए बस सेवायें चलती हैं।
हालांकि कुछ नगरों से पुडुचेर्री के लिये सीमित रेल सेवायें हैं। विल्लुपरम, चेन्नई से रामेश्वरम रेलमार्ग पर प्रमुख रेलवे स्टेशन है जहां से पुदुचेरी 40 किमी दूर है। तटवर्ती तमिलनाडु व चेन्नई की ओर आने जाने वाली अनेक रेलगाड़ियां यहाँ से गुजरती हैं | विल्लुपुरम से पुडुचेर्री के मध्य नियमित बस सेवायें हैं। वैसे यहां पर एयरपोर्ट भी है किन्तु सीधी सेवायें कम है। नगर में घूमने के लिये किराये की बाइकें भी मिल जाती है। वैसे नगर भ्रमण बसें भी चलती हैं। अक्टूबर से फरवरी माह के बीच यहां मौसम सुहावना रहता है।
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